Sunday, February 10, 2013

धीरे धीरे




महंगाई ने पंख पसारे धीरे-धीरे,
बेबस हो गये लोग हमारे धीरे-धीरे.

सर से पानी गुजर गया तो आँख खुली है,
डूब गये थे सभी किनारे धीरे-धीरे.

लोगों के गुस्से को ठंडा कर सकते थे,
होश में आये राजदुलारे धीरे -धीरे .

खेतों में डीजल के बिन जब आग लगेगी,
भड़केंगे दहकान हमारे धीरे -धीरे .

साकी तुझे पिलाने का ही ढंग नहीं था,
पी सकते थे हम अंगारे धीरे -धीरे .

भ्रष्टाचार पै तुमने रोक लगाईं होती,
बच जाते किस्मत के मारे धीरे -धीरे.

"अंजुम" हर इक चीज़ अगर यूँ महंगी होगी,
मर जायेंगे लोग बेचारे धीरे -धीरे.

                                        हरेन्द्र सिंह कुशवाह

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