Sunday, February 10, 2013

Matdata Mat Dena Sambhaal Ke



खोल पप्पू खोल, आँख अपनी खोल,
नेता हो या मंत्री, सबकी खुल गयी पोल।
दो साल पहले, जिनके पीछे, बज रहे थे ढोल,
माँग रहे थे वोट, करके बातें गोल गोल।
खोल पप्पू खोल ..........

किसी ने खाया चारा पशु का, और किसी ने ताबूत,
किसी ने देखो जमीन डकार ली, कई बीघा साबूत।
कोयले की खानों को छोड़ो, खा जाते बैसाखी लाचारों की,
सही गलत का बोध ना रहा क्या कहें घंटालों की।
आये दिन कर रहे हैं, नया झोलम झोल।
खोल पप्पू खोल ................

कोई जीते जी बना रहा, मूर्ति खुद ही की, पत्थर की,
जनता ही भोली भाली है जो, नहीं समझती बात इनकी।
वो कहते हैं तुम, चीखो, चिल्लाओ, मरो या भाड़ में जाओ,
हम तो ज़िंदा भी पत्थर हैं, जैसे ये मूर्तियाँ पत्थर की।
टहलें सुबह शाम पार्क में, बोल हरी बोल,
खोल पप्पू खोल ..........

पत्थर हैं हम, और पत्थर का ही, हमारा दिल है,
जनता की परवाह कौन करे, हमदर्दी बिल्कुल निल है।
सैकड़ों की भी औकात नहीं थी, जिनकी चुनाव से पहले,
अब अरबों के संपती, और महल में बड़े बड़े होंल।
खोल पप्पू खोल ...........


दो साल पहले पप्पू, जो तू पप्पू न बना होता,
देश ये, तेरा इस हाल में, यूँ ही नहीं पड़ा होता।
मतदान करेगा अबके तू, सोच समझ के बोल?
खोल पप्पू खोल अब तो आँख अपनी खोल।

                                                        हरेन्द्र सिंह कुशवाह

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