Monday, March 26, 2012

कुशवाह समाज का उदय



कुशवाह समाज का उदय किस प्रकार हुआ उसकी साडी चर्चा यहाँ की है



अयोध्या के सूर्यवंशी राजा
महाभारत
पूर्व
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मनुइक्ष्वाकुशशादककुत्स्थअनेनसपृथुविश्वगाश्व आर्द्रयुवनाश्चश्रावस्तवृहदश्वकुवलयाश्वदृढ़ाश्वप्रमोदहर्यश्रवनिकुम्भसंहताश्वकृशाश्वप्रसेनजितयुवनाश्चमान्धातुपुरुकुत्सत्रसदस्युसम्भूतअनरण्यपृषदश्वहर्यश्रववसुमनसतृधन्वनत्रैयारुणत्रिशंकुहरिश्चन्द्ररोहितहरितचंचुविजयरुरुकवृकबाहुसगरअसमज्जसअंशुमनदिलीपभगीरथश्रुतश्रुतनाभागअम्बरीषसिंधुदीपअयतायुसऋतुपर्णसर्वकामसुदासकल्माषपादअश्मकमूलकशतरथवृद्धशर्मनविश्वसहदिलीप२दीर्घबाहुरघुअजदशरथरामचन्द्रकुशअतिथिनिषधनलनभसपुण्डरीकक्षेमधन्वनदेवानीकअहीनगुपारिपात्रदलउकथवज्रनाभशंखनव्युषिताश्वविश्वसहहिरण्यनाभपुष्यध्रुवसन्धिसुदर्शनअग्निवर्णशीघ्रमरुप्रयुश्रुतसुसन्धि अमर्षमहाश्वतअमर्षमहाश्वत विश्रुवतवृहदल

















स्वयंभुव मनु संसार के प्रथम पुरुष थे ऐसी हिंदू मान्यता है। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये।
 


सत्यवादी हरिश्चन्द्र

श्री रामचन्द्र जी के पूर्वज सत्यवादी हरिश्चन्द्र का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है ।  वे अपनी सत्यवादिता और दानशीलता के कारण प्रसिद्व थे ।

देवताओं के कहने पर एक बार ऋषि विश्वामित्र उनकी परीक्षा लेने आये ।  ऋषि ने स्वप्न में उनसे राज्य माँगा ।  प्रातःकाल उठकर स्वप्न में देखे गये व्यक्ति को राजा ने अपना राज्य दे दिया ।

विश्वामित्र ने दक्षिणा माँगी तो राजा ने कहा, मैं एक महीने में आपको दक्षिणा दे दूंगा ।  उनकी पत्नी शैव्या ने कहा, आर्यपुत्र आप मुझे बेचकर दक्षिणा दे दे ।  रानी को बेचकर आधी दक्षिणा का प्रबन्ध हुआ ।  इसके बाद राजा ने श्मशान में जाकर चाण्डाल के हाथों अपने आपको बेचकर पूरी दक्षिणा चुका दी ।

एक दिन उनके पुत्र रोहितशव को साँप ने काट लिया ।  जिससे वह मर गया ।  शैव्या अपने मरे हुए पुत्र का दाह संस्कार कराने के लिये अकेली श्मशान गयी ।  चाण्डाल के सेवक के रुप में वहाँ हरिश्चन्द्र खड़े थे ।  उन्होंने शैव्या से दाह संस्कार के लिये आधा कफन लेना चाहा तो विश्वामित्र अन्य देवताओं सहित वहाँ आ गये । वे राजा से कहने लगे हे राजन तुम्हारी परीक्षा पूरी हो गयी ।  तुम दोनों धन्य हो अपना राज्य सँभालो ।

सब देवताओं ने उन्हें आर्शीवाद दिया जब तक पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्रमा रहेंगे आपका यश तब तक संसार में जगमगाता रहेगा ।

जल छिड़ककर विश्वामित्र ने रोहिताश्व को जीवित कर दिया । चारो ओर महाराज हरिश्चन्द्र और महारानी शैव्या की जयजयकार होने लगी । 

शिक्षा – मनुष्य को अपनी प्रतिज्ञा का सदैव पालन करना चाहिये ।



भगीरथ का नाम हमारे देश के इतिहास के शिखर पुरुषों में इसलिए दर्ज है कि वे गंगा को इस धरती पर लाए थे। इस काम के लिए, यानी गंगा इस धारा पर आए, इसमें सफलता पाने के लिए भगीरथ ने सारा जीवन खपा दिया और इस हद तक खपा दिया कि सफलता मिल जाने के बाद उनके नाम के साथ दो चीजें (शायद हमेशा के लिए) जुड़ गई हैं।

एक, गंगा को उनके नाम पर भागीरथी नाम मिल गया और दो, दुनिया में हर उस प्रयास को, उस प्रयत्न को, उस कोशिश को भगीरथ प्रयास या भगीरथ प्रत्यन कहा जाने लग गया, जो प्रयास सचमुच में विपुल हो और जिसे किसी खास बड़े सार्वजनिक हित के लिए किया गया हो।





श्रीराम विष्णु के अवतार हैं, वे आदिपुरुष हैं, जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को दंड दिया जा सके। रामावतार भगवान विष्णु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतारों में सर्वोपरि है।

गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार श्रीराम नाम के दो अक्षरों में 'रा' तथा 'म' ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं, जैसा कि राम पूर्वतापिन्युपनिषद में कहा गया है-

रमन्ते योगिनोअनन्ते नित्यानंदे चिदात्मनि।
इति रामपदेनासौ परंब्रह्मभिधीयते।

संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में भगवान रामचन्द्र को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। गुरु गोविंदसिंहजी ने रामकथा लिखी है।

पूर्व की ओर कृतिवास रामायण तो महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण चलती है। हिन्दी में तुलसी दास जी की रामायण सर्वत्र प्रसिद्ध है ही, सुदूर दक्षिण में महाकवि कम्बन द्वारा लिखित कम्ब रामायण अत्यंत भक्तिपूर्ण ग्रंथ है। स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम ग्रंथों के विस्तार का वर्णन किया है-

नाना भाँति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा॥


मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं।

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव

हम राम के जीवन पर दृष्टि डालें तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती। जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया। राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं। राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं। राम ने नियम, त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है।

राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप रचकर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया, मानवता का उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया। उपनिषदों में राम नाम, ॐ अथवा अक्षर ब्रह्म हैं व इसका तात्पर्य तत्वमसि महावाक्य है-

'र' का अर्थ तत्‌ (परमात्मा) है 'म' का अर्थ त्वम्‌ (जीवात्मा) है तथा आ की मात्रा (ा) असि की द्योतक है।

भारतीय जीवन में राम नाम उसी प्रकार अनुस्यूत है जिस प्रकार दुग्ध में धवलता।

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने 'यशोधरा' में राम के आदर्शमय महान जीवन के विषय में कितना सहज व सरस लिखा है-

राम। तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है

श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है। वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं। कहा गया है-

एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा।

एक राम का सकल पसारा,
एक राम है सबसे न्यारा॥

उस उक्ति के द्वारा श्रीराम के चार रूप दर्शाए गए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ-नंदन, अंतर्यामी, सौपाधिक ईश्वर तथा निर्विशेष ब्रह्म। पर इन सबमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पूजनीय है। 


लव और कुश


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