गजानन माधव मुक्तिबोध www.kavitakosh.org/muktibodh | |
जन्म: 13 नवंबर 1917
निधन: 11 सितंबर 1964
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उपनाम | मुक्तिबोध |
जन्म स्थान | श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | चांद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह), कामायनी:एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र(आखिर रचना क्यों), समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी (आलोचनात्मक कृतियाँ) एवं भारत:इतिहास और संस्कृति। |
विविध | |
जीवनी | गजानन माधव मुक्तिबोध / परिचय |
गजानन माधव मुक्तिबोध www.kavitakosh.org/muktibodh | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जन्म: 13 नवंबर 1917
निधन: 11 सितंबर 1964
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उपनाम | मुक्तिबोध | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जन्म स्थान | श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कुछ प्रमुख कृतियाँ | चांद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह), कामायनी:एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र(आखिर रचना क्यों), समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी (आलोचनात्मक कृतियाँ) एवं भारत:इतिहास और संस्कृति। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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जीवनी | गजानन माधव मुक्तिबोध / परिचय कविता संग्रह लम्बी कविताएँ
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
’ब्रह्मराक्षस’ और ’अंधेरे में’ वे प्रतिनिधि कविताएं हैं जिनसे मुक्तिबोध की कविता और उनकी रचना प्रक्रिया को समझा जा सकता है . कुबेरनाथ राय ने लिखा है,जैसे ’टिण्टर्न ऐबी’ और ’इम्मॉर्टलिटी ओड’ को पढ़कर वर्ड्सवर्थ को या ’राम की शक्तिपूजा’ ,’बादल राग’ और ’वनवेला’ को पढ़ कर निराला को पहचाना जा सकता है… वैसे ही इन दो कविताओं को पढ़ कर मुक्तिबोध के कवि-व्यक्तित्व को समझा जा सकता है . पढ़ें कविता ’अंधेरे में’ का पहला भाग : अँधेरे में / 1 ज़िन्दगी के… कमरों में अँधेरे लगाता है चक्कर कोई एक लगातार; आवाज़ पैरों की देती है सुनाई बार-बार….बार-बार, वह नहीं दीखता… नहीं ही दीखता, किन्तु वह रहा घूम तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक, भीत-पार आती हुई पास से, गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा अस्तित्व जनाता अनिवार कोई एक, और मेरे हृदय की धक्-धक् पूछती है–वह कौन सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई ! इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से फूले हुए पलस्तर, खिरती है चूने-भरी रेत खिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह– ख़ुद-ब-ख़ुद कोई बड़ा चेहरा बन जाता है, स्वयमपि मुख बन जाता है दिवाल पर, नुकीली नाक और भव्य ललाट है, दृढ़ हनु कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति। कौन वह दिखाई जो देता, पर नहीं जाना जाता है !! कौन मनु ? बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब… अँधेरा सब ओर, निस्तब्ध जल, पर, भीतर से उभरती है सहसा सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है और मुसकाता है, पहचान बताता है, किन्तु, मैं हतप्रभ, नहीं वह समझ में आता। अरे ! अरे !! तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ, शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर चीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात्– वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक तिलस्मी खोह का शिला-द्वार खुलता है धड़ से …………………… घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी अन्तराल-विवर के तम में लाल-लाल कुहरा, कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक, रहस्य साक्षात् !! तेजो प्रभामय उसका ललाट देख मेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथर गौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुख सम्भावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकर विलक्षण शंका, भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात् गहन एक संदेह। वह रहस्यमय व्यक्ति अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है पूर्ण अवस्था वह निज-सम्भावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिमाओं की, मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव, हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह, आत्मा की प्रतिमा। प्रश्न थे गम्भीर, शायद ख़तरनाक भी, इसी लिए बाहर के गुंजान जंगलों से आती हुई हवा ने फूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी- कि मुझको यों अँधेरे में पकड़कर मौत की सज़ा दी ! किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही आँखों में बँध गयी, किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया, किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में गिरा दिया गया मैं अचेतन स्थिति में ! |
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