Monday, September 3, 2012

Sem-4


HIN508
इस कोर्स का चौथा और पाँचवा यूनिट जिसमें शोध प्रविधि तथा शोध पत्र लेखन का सैद्धांतिक पक्ष है जो कई लोगों के लिए समस्या खड़ी करने वाला है , ऐसा मुझ तक जो बातचीत आई, उससे मैंने अनुमान लगाया। हालाँकि जो पावर पॉइंट मैंने डाले हैं उससे अधिक समस्या होनी तो नहीं चाहिए। परन्तु जो हो, मैंने शोध-प्रविधि वाले यूनिट के संबंध में एक क्वेश्चन बैंक जैसा कुछ इस पोस्ट में  डाला है। इससे आपको यह दिशा निर्देशन मिल सकता है कि इसमें आपको किस तरह की तैयारी करनी होगी। शोध पत्र लेखन वाले यूनिट पर प्रश्नबैंक अगली पोस्ट में डालूंगी। आप अपनी प्रतिक्रिया दें। आपने पिछले पोस्ट संबंधी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
200 शब्दों के प्रश्न
1.      अन्य लेखन की तुलना में शोध लेखन की शैली किस तरह भिन्न होती है, समझाएं।
2.      शोध प्रबंध लेखन में सानुपातिकता होनी चाहिए- इससे आप क्या समझते हैं.?
3.      शोध-प्रक्रिया की दृष्टि से शोध प्रविधि के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
4.      शोध व्यवस्था की दृष्टि से शोध प्रविधि के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
5.      ज्ञान के विषयों के आधार पर शोध-प्रविधि में क्या अंतर है, समझाएं।
6.      "ज्ञान के विभिन्न विषयों में प्रकृति तथा स्वरूप में ही अंतर नहीं होता अपितु उनकी शोध-प्रविधि में भी अंतर होता है"- इस विधान को समझाएं।
7.      साहित्यक शोध में समाजशास्त्र, विज्ञान तथा मनोविज्ञान की प्रविधि के प्रयोग का क्या तात्पर्य है, उदाहरण दे कर समझाएं।
8.      हिन्दी शोध प्रबंधों की प्रचलित शौलियों पर विचार करें।
9.      "शोध प्रविधि की वैज्ञानिकता साहित्य के प्राणतत्व रस का विरोध तथा उन्मूलन नहीं करती अपितु रक्षा करती है" इस विधान को समझाएं।
50 शब्दों के प्रश्न
1.      शोध प्रबंध का भूमिका लेखन।
2.      शोध प्रबंध का निष्कर्ष  लेखन।
3.      शोध प्रबंध में ग्रंथ सूची का महत्व।
4.      शोध प्रबंध में नामानुक्रमणिका का तात्पर्य।
5.      शोध प्रबंध का मूल भाग।
6.      सामग्री संकलन।
7.      शोध प्रबंध मे विषय निर्वाचन का महत्व।
8.      शोध प्रबंध में परिशिष्ट का महत्व।
9.      शोध प्रबंध लेखन में लिए गए तथ्यों का स्वरूप।
10.  शोध-प्रबंध लेखन में वैयक्तिक तथा निर्वैयक्तिक शैलियों का तात्पर्य समझाएं।
11.  आलोचनात्मक प्रविधि।
1 अथवा 2 वाक्यों के प्रश्न
1.      क्या शोध-व्यवस्था शोघ प्रविधि का पर्याय है?
2.      शोध व्यवस्था में वे कौन से मुद्दे हैं जो शोध-प्रविधि कहे जा सकते हैं?
3.      अज्ञान अथवा विस्मृति के कारण अवशिष्ट शोध-तत्व किसमें समाहित किये जा सकते हैं?
4.      भूमिका लेखन , प्रबंध लेखन तथा निष्कर्ष के बीच किस तरह का संबंध होना चाहिए?
5.      शोध-प्रक्रिया किसे कहते हैं?
6.      शोध प्रक्रिया में किस तरह की दृष्टि उसे शोध-प्रविधि कह सकते हैं?
7.      ग्रंथ-सूची की वैज्ञानिकता का क्या तात्पर्य है?
8.      शोध लेखन का विश्वविद्यालय चयन से क्या संबंध है?
9.      सामग्री का विश्लेषण करते समय शोधक में  तटस्थता की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए?
10.  तथ्य समायोजन करते समय वैज्ञानिकता की क्या आवश्यकता है?
11.  तथ्यों का समायोजन करते हुए उनकी परिशुद्धि कर के सत्यापन करने की आवश्यकता क्या है?
12.  ग्रंथ सूची कब शोध प्रविधि का अंग बनती है?
13.  ज्ञान के विभिन विषयों की प्रकृति तथा स्वरूप के अलावा और किस में अंतर होता है?
14.  साहित्य तथा भाषा शोध में किस प्रविधि का प्रयोग होता है?
15.  शोध-प्रबंध के लिए कौन-सी शैली अनुपयुक्त तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है?
16.  शोध प्रबंध की कौन-सी शैली आगमनात्मक तथा कौन-सी निगमनात्मक कहलाती है?
17.  वैज्ञानिक शोध-प्रविधि का क्या अर्थ है?


Department of Hindi
Semester based Credit system Course
Semester-4
From June 2011
HIN 507 हिन्दी भाषा प्रशिक्षण एवं कोश विज्ञान   Course Credit -4
यहाँ इस कोर्स से संबंधित कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं। इस बीच यह सवाल सभी के मन में रहा कि आखिर इसमें प्रश्न कैसे पूछे जा सकते हैं। कई केन्द्रों के छात्रों के मन में यह प्रश्न भी था कि इसे ठीक तरह से पढ़ाया नहीं गया है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि यह नितांत नया पाठ्यक्रम है और इसे स विश्वविद्यालय में प्रथम बार ही संकल्पित किया गया है और लागू भी किया गया है।  संभवतः इन प्रश्नों के आधार पर समस्या का निराकरण हो सकेगा। इस बात को ध्यान में रखा जाए कि यह कोर्स विद्यार्थी की भाषा संबंधी, भाषा के प्रयोग संबंधी समझ से जुड़ा है। आज आप हिन्दी पढ़ कर कहीं नौकरी करने जाएंगे तो अगर आप की भाषा ठीक नहीं होगी तो आपके लिए कठिनाई बढ़ेगी। आपका पिछला और वर्तमान कोर्स इसी बात की ओर संकेत करता है। भाषा को रचना के स्तर पर जानना और उसका प्रयोग करना, यही इसका उद्देश्य है। यहाँ आपकी सहायता के लिए कुछ प्रश्न दिए जा रहे हैं ताकि आप इस बात का अंदाज़ा लग सकें कि अभी आपको किस दिशा में अधिक आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इस बात का ध्यान रखें की यह केवल पाठ्यक्रम की दिशा सूचक जानकारी है। प्रश्न का स्वरूप बिल्कुल ऐसा ही होगा, यह ज़रूरी नहीं है।
इस कोर्स के प्रथम दो यूनिट के प्रश्न भी बाद की पोस्ट में डाले जाएंगे। अभी यूनिट 3,4 तथा 5 संबंधी जानकारी आपके लिए डाली जा रही है।
यूनिट -3 निबंध लेखन
·         निबंध की भाषा
Ø  (7 अंक के प्रश्न)(200 शब्दों में)
1.      कथात्मक स्वरूपों की अपेक्षा निबंध में भाषा का महत्व क्या है?
2.      निबंध की वस्तु (विषय) भाषा के माध्यम से किस तरह विकसित होती है?
3.      तत्सम प्रधान भाषा किस तरह के निबंधों में प्रयुक्त होती है। उदाहरण के माध्यम से समझाएं?
4.      बालकृष्ण भट्ट अथवा अपनी पसंद के किसी अन्य निबंधकार की भाषागत विशेषताएं लिखिए।
5.      तद्भव भाषा अथवा बोलचाल की सामान्य भाषा में लिखे निबंधों की विशेषताएं बताइए।
6.      नारी अथवा स्त्री निबंध की भाषा में निहित अंतर समझाएं।
7.      अपने पढ़े किसी भी निबंध के आधार पर सामासिक भाषा तथा सरल भाषा के उदाहरण दें।
8.      विज्ञापन युग निबंध की भाषा पर प्रकाश डालें।
9.      हिन्दी का महत्व नामक विषय पर बोलचाल की अथवा तत्सम प्रधान भाषा में निबंध लिखें।
10.  अगर गद्य कविता की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है- इस विधान को समझाएं।
11.  (406 वाले कोर्स के निबंधों को आधार बना कर भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।)
·         निबंध की शैली
Ø  (7 अंक के प्रश्न)(200 शब्दों में)
1.      निबंध के स्वरूप में शैली का संबंध लेखक के व्यक्तित्व के साथ किस तरह जुड़ा है- उदाहरण दे कर समझाएं।
2.      शैली निबंध का प्राण है- इस कथन पर अपने विचार लिखें।
3.      निबंध की विभिन्न शैलियों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जैसे वर्णनात्मक, विवरणात्मक, सामासिक आदि।
4.      निबंध के स्वरूप में शैली का संबंध किन किन तत्वों से जुड़ा है, समझाएं।
Ø  1 अंक के प्रश्न
1.      शैली के लिए प्रयुक्त अन्य समानार्थी शब्दों के नाम लिखें।
2.      (इसमें कुछ उदाहरण दे कर यह पूछा जा सकता है कि शैली कौन सी है अथवा भाषा किस प्रकार की है। ये उदाहरण प्रसिद्ध रचनाओं में से लिए जाएंगे। अथवा 406 में जो आप पढ़ चुके हैं उसमें से पूछा जा सकता है।
·         विभिन्न प्रकार के निबंधों में प्रयुक्त भाषा का पाठ
1.      इसमें कुछ प्रसिद्ध निबंधों के उदाहरण दे कर  उनके भाषा पाठों के संदर्भ में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। परीक्षार्थी से अपेक्षित यह है कि उसे भाषा पाठों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
·         निबंध लेखन (7 तथा चार अंक के प्रश्न इसमें से निकल सकते हैं)
Ø  इसमें आपको बाकायदा निबंधात्मक लेखन करना होगा।(200 शब्दों में)। इसमें आपने अब तक जो पढ़ा है, उसी को आधार बना कर पूछा जा सकता है। इस संदर्भ में ब्लॉग में जानकारी दी है।
यूनिट 4 
कहानी लेखन
·         कहानी की भाषा (7 अंक के प्रश्न)
1)      कहानी की भाषा अन्य गद्य स्वरूपों (उपन्यास, नाटक, निबंध, रेखाचित्र आदि) से किस तरह भिन्न होती है।
2)      कहानी लेखन में भाषा की भूमिका क्या होती है।
3)      कहानी लेखन में पात्रानुकूल भाषा क्यों महत्वपूर्ण होती है।
4)      (किस प्रकार की कहानियो मं पात्रानुकूल भाषा अपेक्षित है, कारण बताएं।(4 अंक)
5)     प्रसिद्ध कहानीकारों की भाषा संबंधी विशेषताएं बताइए। (इसमें केवल वे ही कहानीकार होंगे जिनके बारे में आप पढ़ चुके हैं)
6)      किसी भी कहानी के एक अंश के आधार पर उसकी भाषा संबंधी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
·         कहानी की भाषा की सर्जनात्मकता
1)      चरित्र-चित्रण में भाषा की सर्जनात्मकता किस तरह काम करती है।
2)      कथानक के विकास में भाषा की क्या भूमिका है।
3)      वातावरण के निर्माण में भाषा की सर्जनात्मकता का उपयोग कैसे किया जा सकता है।
4)      इन प्रश्नों को पूछते हुए प्रसिद्ध कहानीकारों की भाषा से उदाहरण लिए जा सकते हैं।
·         विभिन्न प्रकार की कहानियों में प्रयुक्त भाषा पाठ
1)      इसमें कुछ प्रसिद्ध कहानियों के उदाहरण दे कर उनके भाषा पाठों के संदर्भ में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। परीक्षार्थी से अपेक्षित यह है कि उसे भाषा पाठों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
·         कहानी लेखन  (7 तथा 4 अंकों के प्रश्न इसमें से निकल सकते हैं।)
इसमें परीक्षार्थी से यह अपेक्षित है कि वह दिए हुए प्रसंग के आधार पर कहानी लिखे। इसमें उससे यह अपेक्षित है कि वह कथा-भाषा का औचित्यपूर्ण उपयोग करे।
1.      कोश- निर्माण
·         विभिन्न प्रकार के कोशों का परिचय, महत्व एवं उपयोगिता
·         हिन्दी कोशों का परिचय
·         कोश निर्माण के सिद्धांत
·         कोश निर्माण में आने वाली बाधाएं
 इसमें  जिस प्रकार के प्रश्न आ सकते हैं वह स्वतः स्पष्ट हैं अतः अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है।


HIN509 अनुवाद और उत्तर आधुनिकता
(3)
अनुवाद और उत्तर आधुनिकता के संदर्भ में हमने पिछली पोस्ट में पाठ, अन्तर्पाठ तथा हायपर टैक्स्ट को समझा था। लेकिन यह प्रश्न तो बना ही रहता है कि आखिर देरिदा जिसने अनुवाद को लेकर एक नई समझ विकसित की उसका आधार क्या है। देरिदा ने जो विखंडन का सिद्धांत दिया, उसमें उनके अनुवाद संबंधी विचार का बड़ा महत्व है।
अपनी बात आगे बढ़ाने के पूर्व हम निम्नलिखित बिंदुओं पर अपना ध्यान केन्द्रित करें
Ø  अनुवाद की परम्परागत समझ बनाम अनुवाद की उत्तर-आधुनिक समझ
Ø  अनुवाद और प्रौद्योगिकी
Ø  अनुवाद की उत्तर आधुनिक समझ में छिपी दार्शनिकता।
Ø  उत्तर आधुनिक अनुवाद-दृष्टि की भाषा संबंधी समझ।
इनमें से दूसरे तथा चौथे मुद्दे की चर्चा हम कर चुके हैं।
पहले तथा तीसरे मुद्दे की चर्चा शेष है। यहाँ इन मुद्दों को रेखांकित करने का इतना ही अर्थ है कि हम इस तरह मुद्दे को ठीक-ठीक समझें। ये मुद्दे एक दूसरे से अलग नहीं है।
क्या ऐसा कहा जा सकता है कि
देरिदा जब अनुवाद में हिंसा की बात करते हैं तो जर्मन लोगों का यहूदी लोगों के साथ जो हिंसा का बर्ताव रहा था (एनिहिलेट) तो देरिदा अनुवाद को एक हिंसात्मक कार्यवाही मानता है। जब तक मूल को एनिहिलेट नहीं किया जा सकता तब तक अनुवाद संभव नहीं है। यानी एक जाति दूसरी जाति को एनिहिलेट करती है। मूल जाति मर जाती है, पर उनमें से जो बचे रहते हैं, उन्हीं में संक्रमित हो कर नई जाति पैदा होती है। यह नई जाति ही उस पुरानी जाति का विकास है। अनुवाद की संकल्पना को देरिदा, असल में, मनुष्य जाति के क्रमशः विकास के इतिहास के संदर्भ में भी कहीं न कहीं निदर्शित करता है।
जर्मनों का जो शुद्धतावादिता का कन्सेप्ट है, उस पर देरिदा के अनुवाद संबंधी विचार एक चोट की तरह हैं। मूल तभी जीवित रह सकता है जब वह अनूदित होता है। जब वह अनूदित होता है, तो शुद्ध नहीं रह पाता। एक जाति दूसरी जाति को रिप्लेस करती है। मनुष्य का अस्तित्व आज तक इसीलिए संभव है कि वह लगातार रिप्लेस होता आया है। जो अपने आप को रिप्लेस नहीं करेगा वह मर जाएगा। जो कृति अनूदित नहीं होगी वह मर जाएगी। अनुवाद मूल पाठ को रिप्लेस करता है। पुनः स्थापित करता है। दुबारा रखने की प्रक्रिया में ही वह एक  भाषा से दूसरी भाषा में जाता है।
भाषा चूंकि एक व्यवस्था है। अतः अनुवाद, एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में रूपांतरित होता है। हर व्यवस्था का अपना ढांचा तथा अपना स्वरूप होता है। अपने नियम होते हैं। अनुवाद उन नियमों के तहत एक नए ढांचे में तब्दील होता है तथा नया स्वरूप ग्रहण करता है। इसीलिए अनुवाद एक स्वतंत्र अस्तित्व है। वह मूल पर आधारित होते हुए भी मूल से भिन्न है। मूल से स्वतंत्र है।

                                         
HIN 509/Unit-5
(2)


अनुवाद और उत्तर-आधुनिकता के संदर्भ में हमने कल क्लास में कुछ बातें समझीं थी। हमने इस बात को जानने का प्रयत्न किया था कि उत्तर आधुनिता के आने पर एक भाषा में लिखा हुआ पाठ जब दूसरी भाषा में जाता है, तब वह एर स्वतंत्र रचना पाठ हो जाता है। हमने इस बात को भी समझा था कि उत्तर आधुनिकता के आने के बाद अनुवाद को देखने का लोगों का नज़रिया बदला । अब वह रचना के बराबर दर्ज़े का समझा जाने लगा है। अनुवाद करना अब दोयम दर्जे का काम नहीं रहा। इसका करारण यह है कि अनुवाद करते समय हम स्रोत पाठ की व्याकरणिक व्यवस्था ही नहीं अपितु एस.एल( सोर्स टैक्स्ट, स्रोत पाठ) में रही सामाजिकता, सांस्कृतिकता,एवं राजनैतिक पक्ष भी टी.एल( टार्जेट टेक्स्ट- लक्ष्य पाठ) में स्थानातरित करते हैं। हमने इस बात की भी चर्चा की थी कि पहले केवल अनुवाद कार्य होता था फिर जब उसके सैद्धांतिक पक्ष की चर्चा होने लगी – मसलन परिभाषा अनुवाद स्वरूप अनुवाद कला-विज्ञान-कौशल अनुवाद की प्रक्रिया, मूल्यांकन आदि तो एक शब्द आया- Translatology( अनुवाद-विज्ञान)। अर्थात् अनुवाद पहले एक कार्य था फिर जब उसता शास्त्र बनने लगा तो अनुवाद विज्ञान की संकल्पना आई। उत्तर आधुनिकता के आने के बाद ही हम अनुवाद-अध्ययन जैसे शब्द की चर्चा करने लगे। अर्थात् एक वाक्य में इसे कहें तो
अनुवाद का कार्य प्राचीन समय से होता आया है जब उसका शास्त्र निर्मित हुआ तो वह अनुवाद-विज्ञान हुआ और उत्तर आधुनिकता के बाद वह अनुवाद –अद्ययन हुआ। यानी कि पहला सूत्र हमने यह जाना
अनुवाद            अनुवाद-विज्ञान          अनुवाद-अध्ययन
(कार्य              मिद्धांत                विमर्श)
आज हम इसी संदर्भ में एक और बात समझने का प्रयत्न करेंगे।
आज हमारे समझने का सूत्र होगा-
पाठ               अन्तर्पाठ              हायपर पाठ
(text                                                inter-text                            hyper text)
इस सूत्र को समझने के लिए कुछ पीछे चलें। हमने मेमिस्टर-2 में विखंडनवाद पढ़ा था। लगभग सभी ने इस बात को समझ लिया है ( या क्-से-कम लिखा ते था ही) कि विखंडन पाठ की एक शैली है।
सबसे पहले पाठ शब्द की ओर अपना ध्यान दें। अनुवाद विज्ञान में सबसे पहले दो शब्दों से हमारा सामना हुआ- स्रोत पाठ तथा लक्ष्य पाठ। इस पर से हमने यह समझा कि सेरोत भाषा में लिखा हुआ कुछ भी पाठ कहलाता है चाहे वह एक वाक्य हो अथवा महाकाव्य हो। यानी जिसका अनुवाद किया जाता है और जो अनूदित होता है वह सब कुछ पाठ होता है।
अनुवाद अध्ययन में
                  लिखी हुई हर चीज़ पाठ(text) है।
                                             पढ़ने की शैली को पाठ कहते हैं।
हर पाठ में                 अन्तर्पाठीयता होती है।
Ø  अन्त्रपाठीयता का अर्थ है कि हर पाठ आपको किसी अन्य पाठ की ओर ले जाता है।
Ø  जैसे तुलसीदास के रामचरित मानस में वाल्मिकी के रामायण का पाठ छिपा है।
Ø  नदी के द्वीप में मृच्छकटिक तथा बाणभट्ट की आत्मकथा का पाठ छिपा है।
Ø  गोदान में भारतीय सामन्ती व्यवस्था, दलित विमर्श तथा स्त्री विमर्श का पाठ छिपा है।
अर्थात्
           एक कृति को पढ़ते हुए हमें अन्य कृतियों के पाठ का स्रण होता है।
           अथवा
    अन्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक पाठ छिपे होते हैं जिनका हमें उस पाठ को पढ़ते संय स्मरण होता है। जैसाकि हमने पिछली क्लास में पढ़ा था कि अनुवाद में हं केवल भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था का ही पुनः स्थापन नहीं करते बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पाठ का भी पुनः स्थापन करते हैं।
    अब हम अन्तर्पाठीयता से हायपर टैकेस्ट की ओर आते हैं। आपने ही कल मुझे पिछली क्लास में बताय था कि उत्र आदुनिकता से एक अर्थ यह समझ में आता है कि इसका संबंध सूचना प्रौद्योगिकी से भी जुड़ता है। यानी सूचना प्रौद्योगिकी उत्तर आधुनिकता का एक लक्षण है। तो इसका अर्थ यह लेंगे कि सूचना प्रौद्योगिकी संबंध का इंटरनैट है। हायपर टेक्स्ट का संबंध इसी भाषा प्रौद्योगिकी से है, यानी आपके इंटरनैट से भी है। आप इसे इस तरह समझते हैं।
आपने सेमिस्टर-3 में नेट तथा हिन्दी कंप्यूटिंग पढ़ा था। आपने यूनिकोड़ के अन्त्रगत यह समझा था कि कंप्यूटर की अपनी कोई भाषा नहीं होती। (यानी हिन्दी, गुजराती, अंग्रेज़ी आदि)  आप अपने कंप्यूटर पर कोई अक्षर लिखते हैं- मसलन र या R । कंप्यूटर उसे बाइनरी डिजिट में समझता है। वह आपके लिखे को अपनी भाषा में लिखता है। जैसे नीचे दो चित्र दिए गए हैं। चित्र-1 गूगल के सर्च इंजन का मुख पृ।ठ है। उसे कंप्यूटर ने जिस तरह पढ़ा है उसे चित्र -2 में दिया गया है।( यह असल में बहुत अधिक विस्तृत है।)

HIN510PT

इस नए सत्र के पाठ्यक्रम को अगर आप पढ़ें तो आपकी नज़र सबसे पहले उसके उद्देश्य(Objectives) तथा उसके परिणाम( Outcome of the course) की तरफ़ जाएगी। इसका कोर्स का उद्देश्य है कि विद्यार्थी स्व-अभिव्यक्ति को किस तरह प्रस्तुत करें इसे व्यावहारिक स्तर पर बताया जाए। और इसका उद्देश्य है कि उसकी नौकरी की संभावनाएं खुलें। विभाग उसे किस तरह उसीके पाठ्यक्रम में यह सुविधा देता है। जिस तरह आपने पिछले सेमिस्टर में विज्ञापन बनाना सीखा। हाँ ,पाठ्यक्रम आपको केवल उसकी भूमिका दे सकता है। आपको मेहनत तो स्वयं करनी होगी। यहाँ एक बात आपको बता देना चाहती हूँ कि आज सर्जनात्मकता की सबसे अधिक ज़रूरत है। जो इसमें प्राविणय प्राप्त करते हैं वे ही आज सफल होंगे। आपके पाठ्यक्रम में पढ़ी कहानियाँ इसमें मददरूप होंगी।

अब हम आएं अपने इस पाठ्यक्रम की बात करें। इस बात को मैं पहले के दो पोस्ट में हालांकि लिख चुकी हूँ परन्तु इसका थोड़ा अधिक विस्तार करना मुझे ज़रूरी लग रहा है। इसमें आपके पास तीन विकल्प हैं। पहला शोध-पत्र लेखन, दूसरा रूपांतर तथा तीसरा स्क्रिप्ट लेखन का। इसी सत्र में आप एक कोर्स शोध-प्रविधि का पढेंगे। यह कोर्स आपको इस कार्य की सैद्धांतिक भूमिका प्रदान करेगा। आप ने विभिन्न सेमिनारों में विषय-विशेषज्ञों को प्रपत्र पढ़ते हुए सुना होगा। अब आप अपने निर्देशक की मदद से कोई एक विषय चुनें। मसलन- आप एक विषय चुनें- गोदान का स्त्रीवादी अध्ययन। अब आप याद करें कि पहले सेमिस्टर में आपने काव्य शास्त्र के कोर्स के अन्तर्गत नारीवादी समीक्षा का परिचय पाया है। आपने गोदान उपन्यास भी पढ़ा है। उस दिशा में आप और आगे बढ़े। नारीवादी समीक्षा क्या होती है इतना जान लेने के बाद आप दुबारा नए सिरे से गोदान पढें। फिर गोदान के संदर्भ में आप क्या विशेष जान सकते हैं, किन पुस्तकों के आधार पर, उन्हें किस तरह संदर्भित कर सकते हैं, यह सब आपको लिखना है। आपको शोध प्रबंध नहीं लिखना है। आपको इसमें अध्याय नहीं बनाने हैं। परन्तु एक विस्तृत आलेख लिखना है। शोध-आलेख। आप अभी तक जो कोर्स में पढ़ते आए हैं उन पुस्तकों को भी शोध लेख का आधार बना सकते हैं। मसलन आपने कामायनी पढ़ा है , तो कामायनी के आधार पर एक नए दृष्टिकोण से आप लिख सकते हैं। आपने पिछली पोस्टों में देखा होगा कि हमने कामायनी का विस्थापन तथा नारीवादी दृष्टि से अध्ययन प्रस्तुत किया है। आप इस तरह भी लिख सकते हैं। अथवा अगर आपने कहानियों का विकल्प चुना होगा तो नयी कहानी के परिप्रेक्ष्य में आप किसी एक कहानीकार का मूल्यांकन भी कर सकते हैं। अथवा आपने लंबी कविता का विकल्प चुना हो तो आप किसी एक कविता का या दो कविताओं का अध्ययन कर सकते हैं। अगर आप अधिक कल्पनाशील तथा उद्यमी और उत्साही हैं तो आप एक हिन्दी तथा एक गुजराती की लंबी कविता का अध्ययन कर सकते हैं। अथवा पंत की प्रकृति/अरविंद विचार की कविता का गुजराती की उसी तरह की कविता( गुजराती कवि सुंदरम) को ध्यान में रख कर अध्ययन कर सकते हैं। अथवा इसी तरह कई प्रकार के पेपर लिख सकते हैं। आप चाहें तो हिन्दी की एक वर्तमान साहित्यिक पत्रिका और गुजराती की एक वर्तमान साहित्यिक पत्रिका का भी अध्ययन कर सकते हैं। आप चाहें तो अहमदाबाद से छपते एक हिन्दी अकबार तथा गुजराती अखबार की तुलना कर सकते हैं। आपको किसी मुद्दे पर दोनों अखबारों के दृष्टिकोण का अध्ययन करना होगा। इसके अलावा आप अनुवाद के कोर्स में अनुवाद मूल्यांकन पढ़ेंगे। मूल्यांकन के मापदंडों के आधार पर आप किसी अनूदित कृति का मूल्यांकन भी प्रस्तुत कर सकते हैं। आप देखेंगे कि हमारे पाठ्यक्रम में हर कोर्स , दूसरे कोर्स के साथ जुड़ा है। पूरा पाठ्यक्रम एक यूनिट है। यहाँ परीक्षा की दृष्टि से आप चाहें तो भूल सकते हैं। पर ज्ञान प्राप्ति की दृष्टि से अगर याद रखेंगे तो सब एक दूसरे से संबद्ध पाएंगे। आप अपने अपने अजनबी की अस्तित्ववादी शोध-परक समीक्षा कर सकते हैं। आपने अस्तित्ववाद पर पढ़ा है। आपने नारीवादी तथा दलित कृतियां पढ़ी हैं, इतिहास के कोर्स में उसके बारे में पढ़ा है , दलित सौन्दर्य शास्त्र पढ़ा है अतः इस क्षेत्र में भी आप शोध आलेख लिख सकते हैं।

यह प्रोजेक्ट आपको कंप्यटरीकृत करके देना होगा।

इसी तरह जो अन्य दो विकल्प है। तो आपने प्रयोजनमूलक में इनका सैद्धांतिक पक्ष पढ़ा है। अब आपको इनका प्रायोगिक पक्ष प्रस्तुत करना होगा। इसके भी दो एक उदाहरण आप देख सकते हैं। आपको जो कहानी नाट्यात्मक लगती है उसका आप नाट्य रूपांतरण कीजिए। जैसे ईदगाह कहानी का आप कर सकते हैं। जो छात्र इसका नाट्य रूपांतरण करे उसी का आप दृश्य अथवा श्रव्य माध्यम के लिए स्क्रिप्ट लेखन कर सकते हैं। आगे चल कर आप अथवा आपके बाद आने वाले विद्यार्थी इन रूपांतरणों को मंच पर अपनी कॉलेज के लिए अभिनीत भी कर सकते हैं। अब यो युनिवर्सिटी का रेडियो आ गया है। इनका उसके माध्यम से भी प्रसारण हो सकता है। एक तरह से आपका पोर्ट फोलियो बनना शुरु होगा।

इस पूरी प्रक्रिया से आपको लाभ यह होगा कि एम.ए कर लेने के बाद आप बजार में इन चीज़ों की जो संभावनाएं भरी पड़ी हैं उसमें औरों से बेहतर तरीक़े से स्र्पर्धा में ठहर सकते हैं। पर आपको इसके लिए मेहनत करनी होगी। पाठ्क्रम में तो केवल दिशा निर्देशन है।

लेकिन हम हिन्दी के विद्यार्थियों की सबसे बड़ी तक़लीफ़ यह है कि हम अपने विषय को उतनी गंभीरता से नहीं लेते जितना लेना चाहिए। किसी भी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन में कंटेंट और एक्स्प्रेशन- ये दो पहलू होते हैं। आपका कंटेंट कितना भी बेहतर हो परन्तु आप अगर भाषा-अभिव्यक्ति में कुशल नहीं हैं, तो सब बेकार है। अतः आपके पाठ्यक्रम में इसकी भी व्यवस्था की है। इस संदर्भ में आप अगली पोस्ट में पढेंगे। इसका संबंध आपके कोर्स 507 से संबंद्ध है।

हाँ, एक बात और । शोध-पत्र लेखन में संदर्भों का विशेष महत्व है। आप जब उसे कंप्यूटरीकृत करवाएंगे तब अगर आप विंडो7 में काम कर रहे हैं, तो ऊपर रेफेरेंस लिखा होगा। आप अपने टाइपिस्ट से कहेंगे तो वह आपको इसमें मदद कर सकेगा। यूँ तो हमने पिछले सत्र में हिन्दी कंप्यूटिंग में हिन्दी में कैसे टाईप किया जाए इसके लिए भी गुंजाइश रखी थी । अगर आपने उसमें कुछ काम किया हो तो आप अपना शोध पत्र खुद टाईप कर सकते हैं।

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